Dr. Neha Sinha*
नेल्सन मंडेला, जिन्हें अक्सर 'दक्षिण अफ्रीका का गांधी' कहा जाता है, का जन्म 18 जुलाई, 1918 को दक्षिण अफ्रीका के डरबन में हुआ था. उनके और भारत देश के राष्ट्रपिता के बीच अनेकों समानताएं थीं.
नेल्सन मंडेला, जिन्हें अक्सर 'दक्षिण अफ्रीका का गांधी' कहा जाता है, का जन्म 18 जुलाई, 1918 को दक्षिण अफ्रीका के डरबन में हुआ था. उनके और भारत देश के राष्ट्रपिता के बीच अनेकों समानताएं थीं. वे गांधी जी से इतने अधिक प्रभावित थे कि उन्होंने उन्हें और गांधी की विचारधारा से सामंजस्य बनानेवाली समिति को दक्षिण अफ्रीका की जीत का श्रेय दिया था. गांधी की तरह ही मंडेला ने अहिंसा और सत्य के अविभाज्य होने की वकालत की. उन्होंने कहा था, ‘गांधी अहिंसा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए सबसे अधिक पूजनीय हैं और कांग्रेसी आंदोलन इस गांधीवादी दर्शन से काफी प्रभावित था. यह एक दर्शन था, जिसने 1952 के अवज्ञा अभियान के दौरान लाखों दक्षिण अफ्रीकी लोगों को संगठित किया, जिसने एक जन-आधारित संगठन के रूप में अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस (एएनसी) की स्थापना की.’
इस रंगभेद विरोधी प्रतिनिधि व्यक्तित्व ने भारत के लिए एक विशेष बंधन साझा किया क्योंकि मंडेला ने गांधी (उनके राजनीतिक गुरु और आदर्श) की भूमि को सलाखों के पीछे 27 साल बिताने के बाद 1990 में विदेश यात्रा में अपने पहले गंतव्य के रूप में चुना. उस दौरान उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है. वे भारत रत्न के पहले गैर-भारतीय प्राप्तकर्ता थे. साल 1993 में शांति के लिए नोबेल पुरस्कार मिलने से पहले ही यह हो गया था. मंडेला, जिन्हें प्यार से मदीबा के नाम से जाना जाता था, ने दक्षिण अफ्रीका में गांधी मेमोरियल का अनावरण करते हुए एक बार कहा था, ‘महात्मा हमारे इतिहास का एक अभिन्न अंग हैं क्योंकि उन्होंने सत्य के साथ पहली बार यहां प्रयोग किया था, यहां उन्होंने न्याय की खोज में अपनी विशिष्ट दृढ़ता का प्रदर्शन किया, यहां उन्होंने सत्याग्रह को एक दर्शन और संघर्ष की एक पद्धति के रूप में विकसित किया.’
गांधी की शिक्षाओं के एक मजबूत अनुयायी के रूप में उन्हें 2001 में भारत सरकार द्वारा शांति के प्रयासों के लिए अंतरराष्ट्रीय गांधी शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. नेल्सन मंडेला की दृष्टि में, ‘हिंसा और संघर्ष से प्रेरित दुनिया में गांधी का शांति और अहिंसा का संदेश 21वीं सदी में मानव अस्तित्व की कुंजी है.' जब भी मंडेला भारत आये, तो उन्होंने इसे अपने राजनीतिक गुरु की भूमि का तीर्थ माना. मंडेला ने कहा, ‘गांधी की राजनीतिक तकनीक और अहिंसक दर्शन के तत्व जोहानसबर्ग में उनके प्रवास के दौरान विकसित हुए और दक्षिण अफ्रीका में नस्लीय भेदभाव के खिलाफ निरंतर संघर्ष के लिए स्थायी विरासत बन गये.’
गांधी और मंडेला दोनों अपने-अपने लोगों के लिए नये-नये नामों से भी जाने जाते थे- गांधी जी बापू तथा मंडेला टाटा के नाम से. दोनों शब्दों का अर्थ 'पिता' होता है क्योंकि वे अपने राष्ट्र के लिए पिता के रूप में थे. इसके अलावा वे दोनों वर्षों से और आज की दुनिया के लिए महत्वाकांक्षी और प्रेरक व्यक्तित्व हैं. इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि मंडेला और गांधी दोनों महान नेता थे और सभी वर्गों के लोगों को एकजुट करने के उनके प्रयास और नस्लवाद के विरोध का दुनियाभर में सम्मान है और उनकी सराहना की जाती है.
नेल्सन मंडेला अंतरराष्ट्रीय दिवस हर साल एक ऐसे व्यक्ति की विरासत पर प्रकाश डालने के लिए मनाया जाता है, जिसने 20वीं शताब्दी को बदल दिया और 21वीं को आकार देने में मदद की. यह हमें संघर्ष, समाधान, लोकतंत्र, मानवाधिकार, शांति और सुलह की दिशा में काम करने में मंडेला की उपलब्धियों की याद दिलाता है. यह लोगों को मंडेला द्वारा साझा किये गये मूल्यों को अपनाने के लिए प्रेरित करने की उम्मीद करता है, जिनमें शामिल हैं- लोकतंत्र, स्वतंत्रता, समानता, विविधता, सामंजस्य और सम्मान.
Dr. Neha Sinha teaches at Amity Institute of International Studies, Amity University, Noida.
(Disclaimer: Article already published in Prabhat Khabar
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